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One Nation One Election: क्या हैं ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के फायदे और नुकसान

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One Nation One Election: ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ का मुद्दा आजकल काफी चर्चाओं में हैं जिसका मकसद लोकसभा (संसद) और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ आयोजित करना है। इसके पक्षकारों ने तर्क दिया है कि इससे चुनावों में साधन और धन दोनों को ही बचाया जा सकता है।

अगस्त 2018 में भारत के विधि आयोग ने एक साथ चुनावों पर मसौदा रिपोर्ट जारी किया था जिसके मुताबिक, एक राष्ट्र, एक चुनाव (One nation One election) से सार्वजनिक धन की बचत, प्रशासनिक व्यवस्था और सुरक्षा बलों पर पड़ने वाले तनाव को कम किया जा सकेगा।

रिपोर्ट में कहा गया कि इससे विकास गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकेगा और कई प्रशासनिक सुधार किया जा सकेगा। हालांकि एक साथ चुनाव कराने में बहुत चुनौतियां हैं। केंद्र सरकार ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (One nation One election- ONOE) के अध्ययन के लिए 8 सदस्यीय कमेटी का गठन किया है।

 

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भारत में 1967 तक राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव एक साथ आयोजित होते थे। आजादी के बाद, 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हुए थे। 1967 के बाद यह प्रक्रिया बिगड़ गई। 1983 में भी चुनाव आयोग (election commission of India) ने एक साथ चुनाव करने का प्रस्ताव दिया था लेकिन तत्कालीन सरकार ने इसके खिलाफ फैसला दिया था। 1999 में विधि आयोग ने एक साथ चुनाव कराने के लिए प्रस्ताव दिया था। बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान अपने चुनावी घोषणापत्र में एक साथ चुनाव कराने की बात की थी। लेकिन अभी भी कुछ राज्यों (आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम) में विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ होते हैं।

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‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (One nation One election) की चुनौतियां:

एक साथ चुनाव कराने के लिए कई कानूनी परिवर्तन की जरूरत होगी। पार्टियों को अपनी चुनावी रणनीतियों पर पुनर्विचार करना होगा, ताकि वे एक साथ चुनावों के लिए अपनी रणनीति को तैयार कर सकें। भारत के अलग-अलग राज्यों में चुनौतियां भिन्न हो सकती हैं। जन भावनाएं भी इस प्रस्ताव के साथ जुड़ी हैं। कुछ लोग इससे चिंतित हैं कि इससे उनके अधिकारों को कमजोर किया जा सकता है। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री के कार्यकाल की सीमा को लेकर भी चर्चाएं हो सकती हैं।एक साथ चुनाव के लिये ज्यादा संख्या में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और वोटर-वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) मशीनों की जरूरत होगी। साथ ही मतदान से जुड़े उपकरणों को रखने आदि में लागत खर्च में बढ़ोतरी होगी।

दुनिया के इन देशों में एक साथ चुनाव (One nation One election):

ब्राजील, कोलंबिया और फिलीपींस में राष्ट्रपति पद के लिए और विधायी स्तर पर चुनाव एक साथ किए जाते हैं। इन देशों में राष्ट्रपति शासन प्रणाली है। वहीं दक्षिण अफ्रीका और स्वीडन की बात की जाए तो वहां आम चुनाव और प्रांतीय दोनों चुनाव एक साथ कराए जाते हैं। ब्रिटेन में निश्चित अवधि संसद अधिनियम, 2011 पारित किया गया जिसमें प्रावधान था कि पहला चुनाव 7 मई, 2015 को होगा तथा कार्यकाल समाप्त होने पर हर पांचवें वर्ष मई के पहले गुरुवार को चुनाव होगा।

संविधान के अनुच्छेद 83(2) और अनुच्छेद 172 में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल पांच वर्ष होने का जिक्र है। अनुच्छेद 356 के तहत ऐसी परिस्थितियां भी उत्पन्न हो सकती हैं जिसमें विधानसभाएं को पहले भंग किया जा सकता है। सवाल यह है कि केंद्र अथवा राज्य सरकार का कार्यकाल पूरा होने से पहले सरकार गिरने की स्थिति में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ योजना का क्या होगा। इसलिए विपक्षी दलों का आरोप है कि ‘एक देश, एक चुनाव’ के जरिए जनतंत्रा का गला घोंटने का प्रयास किया जा सकता है। बार-बार यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि ‘एक देश, एक चुनाव’ के जरिए जनतंत्रा का गला घोंटने का काम किया जा सकता है। कुछ राजनीतिक दलों ने तर्क दिया है कि इससे मतदाताओं के व्यवहार प्रभावित होंगे और वह राज्य चुनावों में भी राष्ट्रीय मुद्दों को मुख्य मानते हुए मतदान करेंगे। इससे बड़े दलों को तो फायदा लेकिन क्षेत्रीय दलों को नुकसान झेलना पड़ सकता है। ‘एक देश, एक चुनाव’ के मामले पर देश में बहस छिड़ गई है।

 

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