Israel-Palestine war: इजराइल और फिलिस्तीन का विवाद बहुत वर्षों से चला आ रहा है। कई बार दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करने और मतभेद को समाप्त करने के लिए समझौते हुए लेकिन इसका खास असर नहीं हुआ। अभी तक कई बार छोटे-बड़े युद्ध हो चुके हैं लेकिन यह दूसरी बार है जब इजराइल ने युद्ध का ऐलान किया है। आज हम आपको इस लेख के माध्यम बताएंगे कि आखिर इजराइल और फिलिस्तीन (Israel-Palestine war) के बीच संघर्ष की शुरूआत कब हुई और विवाद की वजह क्या है।
Contents
Israel-Palestine war की शुरूआत
सन 1907 में ‘चाइम वाइजमैन’ नाम का एक केमिस्ट और ब्रिटेन में यहूदियों का बड़ा नेता पहली बार फिलिस्तीन जाता है। वहां जाफा इलाके में एक कंपनी खोलता है। वहां यहूदियों की कॉलोनी बसाने के लिए जमीन की खरीदी की जाती है। प्रथम विश्व युद्ध में ओटोमन साम्राज्य की हार के बाद ब्रिटेन ने फिलिस्तीन को कब्जे में ले लिया। उस समय वहां यहूदी अल्पसंख्यक थे और अरब बहुसंख्यक थे। फिलिस्तीन में यहूदी अप्रवासियों की संख्या में 1920 और 1940 के दशक में बहुत बढ़ जाती है। उस समय यूरोप में कई जगहों पर यहूदियों के साथ उत्पीड़न होता है तो वे मातृभूमि की तलाश में फिलिस्तीन पहुंचते हैं। यहां से विवाद की शुरूआत हो जाती है। यहूदियों और अरबों के बीच तनाव बढ़ने लगता है।ब्रिटिश अधिकारियों को लगा कि वे इस संघर्ष को समाप्त नहीं कर पाएंगे तो वे पीछे हट गए। सन 1948 में यहूदी नेताओं ने इजराइल की स्थापना की घोषणा कर दी। जब फिलिस्तीनियों ने इसका विरोध किया तो युद्ध छिड़ गया। पडोसी अरब देशों ने फिलिस्तीन का साथ दिया। इस दौरान हजारों फिलिस्तीनी वहां से पलायन कर गए और जो बचे उन्हें उनके घरों से निकाल दिया गया, जिसे वे अल नकबा या “द कैटास्ट्रोफ” कहते हैं। वर्ष 1949 में सीजफायर का ऐलान होता है जंग रूक जाती है। फिलिस्तीन का ज्यादातर हिस्से पर इजरायल का कब्जा हो जाता है।
वर्ष 1949 में फिलिस्तीन को इजराइल से आजाद करवाने के लिए फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन (पीएलओ) का गठन किया जाता है। वर्ष 1967 ने सिक्स डे वॉर कर मिस्त्र, जॉर्डन और सीरिया को हराकर ईस्ट यरूशलम, वेस्ट बैंक, गाजा पट्टी और गोलान हाइट्स पर कब्जा कर लिया। वर्ष 1973 में अरब देशों के समूह ने मिस्त्र के नेतृत्व में एक बार फिर हमला करता है लेकिन अमेरिका इस युद्ध में इजराइल की मदद करता है और फिर इजराइल यह युद्ध जीत जाता है। सन 1974 में संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन को दो अलग-अलग यहूदी और अरब राष्ट्रों में बांटने के लिए वोटिंग की गई। 1974 येरूशलम को अंतष्ट्रीय प्रशासन के अधीन रखने की घोषणा की जाती है। यहूदी नेतृत्व तो हामी भर देता है लेकिन अरब इसे स्वीकार नहीं करता।
Israel-Palestine war घटनाक्रम
1982 में फिलिस्तीनी उग्रवादियों पर हमला करने के लिए इजराइल लेबनान में घुसपैठ करता है जिसमें सैकड़ों फिलिस्तीनी शरणार्थी मारे जाते हैं। 1987 में वेस्ट बैंक, गाजा और इजराइल में हिंसक झड़प शुरू हो जाती है जिसमें दोनों तरफ से जानें जाती हैं। 2002-2004 आत्मघाती हमलों की जवाबी कार्रवाई में इजराइल वेस्ट बैंक में घुसपैठ कर देता है। 38 साल तक कब्जे के बाद इजराइली फोर्स गाजा छोड़कर चली जाती हैं और हमास यहां चुनाव जीत जाता है। 2008 में फिलिस्तीन ने इजराइल पर मिसाइल हमला किया जिसके बाद इजराइल जवाबी हमला करता है जिसमें 1110 फिलिस्तीनी और 13 इजराइलियों की मौत हो जाती है। 2012 में इजराइल की कार्रवाई में हमास के मिलिट्री चीफ अहमद जबारी की मौत हो जाती है। इसमें दोनों तरफ से एयरस्ट्राइक होती है और इजराइल के 6 और फिलिस्तीन के 150 लोगों की मौत हो जाती है। वर्ष 2014 को हमास के मिलिटेंट 3 इजराइली बच्चों को मार देते हैं। इसमें 7 हफ्तों तक हिंसा जारी रहती है। इसमें फिलिस्तीन के 2200 और इजराइल के 67 सैनिकों और 6 बच्चों की मौत हो जाती है। 2018 में गाजा में प्रदर्शन होता है जिसमें इजराइली सैनिकों पर हमले होते हैं। वहीं कार्रवाई में इजराइल 170 प्रदर्शनकारियों को मार देता है।
Israel-Palestine war में हमास
फिलिस्तीन में हमास (वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आतंकवादी संगठन की संज्ञा) राजनीतिक पार्टी का गाजा में उद्भव होता है। 2007 में हमास का पूरी तरह गाजा पर नियंत्रण हो गया। इजराइल और फिलिस्तीन संघर्ष वर्षों से आज भी जारी है।
Israel-Palestine war वर्तमान
अभी ये विवाद येरुशलम स्थित अल-अक्सा मस्जिद (Al-Aqsa Mosque) को लेकर हुई है। अल-अक्सा मस्जिद से शुरू हुआ संघर्ष ने जल्दी ही बड़ा बन गया। अल-अक्सा मस्जिद (Al-Aqsa Mosque) येरुशलम में है जिसे इस्लाम धर्म में काफी पवित्र माना जाता है। इस्लाम के अनुयायियों के लिए मक्का, मदीना के साथ यह तीसरा सबसे पवित्र स्थल है। हालांकि इस मस्जिद से यहूदी और ईसाई का भी ताल्लुक रखता है। येरुशलम यहूदी, ईसाई और इस्लाम के अनुयायियों के लिए पवित्र जगह है।
ये भी पढ़ें: One Nation One Election: क्या हैं ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के फायदे और नुकसान