Katchatheevu Island: इंदिरा गांधी ने कच्चातिवु आईलैंड श्रीलंका को क्यों दे दिया, जानिए कहानी

Katchatheevu Island: भारत और श्रीलंका की सीमा पर स्थित कच्चातिवु आईलैंड (Katchatheevu Island) इन दिनों चर्चाओं में है। इतिहास देखा जाए तो यह तमिलनाडू का हिस्सा रहा है लेकिन ऐसा कहा जाता है कि इसे भारत ने श्रीलंका को गिफ्ट में दे दिया था। इस निर्जन आईलैंड पर कोई नहीं रहता है।

खबरों में क्यों (Why in News)?

यह निर्जन आईलैंड भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है, आखिर क्या है कच्चातिवु आईलैंड (Katchatheevu Island) का मामला जिसे बार-बार उठाया जा रहा है। तामिलनाडू के सीएम एमके स्टालिन (MK Stalin) ने पीएम मोदी से अपील करते हुए कहा है कि वे कच्चातिवु आईलैंड को भारत में वापस लाने के लिए श्रीलंका के साथ डिप्लोमेटिक तरीके से बातचीत करें।

कहां है कच्चातिवु (Katchatheevu Island) ?

यह भारत के तमिलनाडु और श्रीलंका के बीच काफी बड़ा समुद्री क्षेत्र है। इसे पाक जलडमरूमध्य कहा जाता है। यहां कई द्वीप हैं, जिसमें से एक द्वीप का नाम कच्चातिवु है। श्रीलंका के विदेश मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक, कच्चातिवु 285 एकड़ में फैला हुआ है, जो बंगाल की खाड़ी और अरब सागर को जोड़ता है।

क्या है कच्चातिवु का इतिहास (Katchatheevu Historical Background)?

ये द्वीप 14वीं शताब्दी में एक ज्वालामुखी विस्फोट के बाद बना था। जो रामेश्वरम से करीब 19 किलोमीटर और श्रीलंका के जाफना जिले से करीब 16 किलोमीटर की दूरी पर है। रॉबर्ट पाक 1755 से 1763 तक मद्रास प्रांत के अंग्रेज गवर्नर हुआ करते थे। इस समुद्री क्षेत्र का नाम रॉबर्ट पाक के नाम पर ही पाक स्ट्रेट रखा गया।  इस निर्जन द्वीप पर भारत और श्रीलंका काफी समय से अपना दावा करते रहे हैं। 19वीं सदी तक यह क्षेत्र रामनाद साम्राज्य में था।

17वीं सदी में रघुनाथ देव किलावन ने खुद को रामनाद साम्राज्य का राजा घोषित कर दिया। इसके बाद कच्चातिवु द्वीप पर उनका राज हो गया। 1902 में भारत की ब्रिटिश हुकूमत ने इस द्वीप पर शासन का अधिकार रामनाद या रामनाथपुरम साम्राज्य के राजा को दिया। इसके बाद रामनाथपुरम के राजा यहां के लोगों से मालगुजारी वसूलते थे। वो अंग्रेज अधिकारी को इसके बदले में एक खास रकम देते थे। 1913 में भारत सरकार के सचिव और रामनाथपुरम के राजा के बीच एक समझौता हुआ था। इस समझौते के मुताबिक, कच्चातिवु को श्रीलंका के बजाय भारत का हिस्सा बताया गया है।

1921 में पहली बार इस क्षेत्र को लेकर भारत और श्रीलंका के बीच विवाद हुआ। उस समय ये द्वीप अंग्रेजों के अधीन था। अंग्रेजों ने इस विवाद पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। इसकी वजह से ये विवाद बढ़ता चला गया। इससे पहले दोनों देशों के मछुआरे इस द्वीप को जाल सुखाने के लिए इस्तेमाल करते थे।

इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने श्रीलंका को सौंपा कच्चातिवु

1974 से 1976 के दौरान तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी और श्रीलंका की पीएम श्रीमाव भंडारनायके ने चार समुद्री जल समझौतों पर हस्ताक्षर किए। जिसके तहत भारत ने  द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया। तब से श्रीलंका इस द्वीप पर कानूनी तौर पर अपना दावा ठोकता है। जब भारत सरकार ने इस द्वीप को लेकर श्रीलंका के साथ समझौता किया था तो तत्कालीन तमिलनाडु सरकार ने इसका विरोध किया था। तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि ने PM इंदिरा गांधी को पत्र लिखा था और कहा था कि ये द्वीप ऐतिहासिक रूप से रामनाद साम्राज्य का हिस्सा है। भारत सरकार को इसे श्रीलंका को नहीं देना चाहिए। हालांकि भारतीय मछुआरों को यहां मछली मारने और जाल सुखाने की इजाजत थी। जिसके कारण भारतीय मछुआरे वहां जाते रहते थे।

समझौते के 15 साल बाद ही कच्चातिवु पर तमिलनाडु ने दावा ठोका

भारत और श्रीलंका के बीच हुए इस समझौते के 15 साल बाद ही 1991 में तमिलनाडु विधानसभा ने कच्चातिवु को एक बार फिर से भारत में मिलाने की मांग की गई और एक प्रस्ताव पास किया था। उस समय श्रीलंका में गृहयुद्ध चल रहा था इसलिए उत्तरी सीमाओं पर तमिल उग्रवादी संगठन LTTE ने कब्जा कर रखा था। इस कारण से तमिलनाडु के मछुआरे मछली पकड़ने के लिए इस द्वीप तक आसानी से पहुंचते थे। 2008 में जयललिता ने 1974 और 1976 के बीच हुए कच्चातिवु द्वीप समझौतों को रद्द कराने का प्रयास किया और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किया।

2009 में श्रीलंका की सरकार और LTTE के बीच की लड़ाई लगभग खत्म होने वाली थी। LTTE संगठन कमजोर हो रहा था। ऐसे में श्रीलंका सरकार ने अपनी सीमाओं पर सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत कर दिया। जब भी तमिलनाडु के मछुआरे मछली मारने के लिए इस द्वीप के करीब जाते थे, श्रीलंका की पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर लेती थी। इसी वजह से तटीय क्षेत्र में रहने वाले लोग इस द्वीप को वापस लेने की मांग एक बार फिर से करने लगे। श्रीलंका सरकार का कहना है कि समुद्र में उसके जल क्षेत्र में मछलियों और दूसरे जलीय जीवों की कमी हो गई है, जिससे उनके मछुआरों की आजीविका प्रभावित हुई है। ऐसे में भारत के मछुआरों को वो इस क्षेत्र में मछली मारने की इजाजत नहीं दे सकते हैं।

कच्चातिवु पर जारी रहा विवाद

कहानी यहीं खत्म नहीं होती, साल 1976 में भारत और श्रीलंका के बीच समुद्री सीमा को लेकर एक और समझौता हुआ। इस समझौते में कहा गया कि भारतीय मछुआरे और मछली पकड़ने वाले जहाज श्रीलंका के एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन में नहीं जा सकते। इस समझौते ने कच्चातिवु द्वीप विवाद को और भड़का दिया। तमिलनाडु का मछुआरा समुदाय इससे काफी ज्यादा खफा था। यही वजह थी कि 1991 में तमिलनाडु की विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें कच्चातिवु द्वीप को भारत में वापस मिलाने की बात कही गई।

वर्ष 2008 में एआईएडीएमके नेता जयललिता ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट के सामने उठाया था जिसमें कहा गया कि भारत सरकार बिना संविधान संसोधन के देश की जमीन किसी दूसरे देश को नहीं दे सकती। साल 2011 में जब वो सीएम बनीं तो विधानसभा में इसे लेकर एक प्रस्ताव भी पारित करवाया। वहीं साल 2014 में इस मामले को लेकर अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने दलील दी थी और कहा था कि कि कच्चातिवु द्वीप एक समझौते के तहत श्रीलंका को दिया गया है और अब वो इंटरनेशनल बाउंड्री का हिस्सा है और उसे वापस कैसे लिया जा सकता है। अगर आप कच्चातिवु द्वीप को वापस लेना चाहते हैं तो इसके लिए आपको युद्ध लड़ना होगा।

 

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